छत्तीसगढ़

शिवसेना किसकी ? शिंदे गुट या उद्धव गुट, सुप्रीम कोर्ट में जोरदार बहस

मुंबई I शिवसेना मामले में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. अभी शिवसेना पर ठाकरे और शिंदे दोनों गुट अपना-अपना दावा कर रहे हैं. उद्धव ठाकरे की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल दलील रख रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पहले दलील देने को कहा जिसकी संविधान पीठ ने मंजूरी दी है. सिब्बल ने कहा कि यह सब 20 जून को शुरू हुआ जब शिवसेना का एक विधायक एक सीट हार गया. विधायक दल की बैठक बुलाई गई. फिर उनमें से कुछ गुजरात और फिर गुवाहाटी चले गए. उन्हें उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था और एक बार जब वे उपस्थित नहीं हुए तो उन्हें विधानसभा में पद से हटा दिया गया था.

सिब्बल ने कहा कि फिर उन्होंने कहा कि हम आपको पार्टी के नेता के रूप में नहीं पहचानते हैं और नया व्हिप अधिकारी नियुक्त किया गया. तब पता चला कि वे भाजपा के साथ अलग सरकार बनाना चाहते हैं. 29 जून को इस अदालत ने एक आदेश पारित करते हुए कहा कि विधानसभा को उचित विचार करने के बाद आगे बढ़ना चाहिए. फिर कहा गया है कि सर्वोच्च अदालत के समक्ष कार्यवाही के परिणाम के अधीन विश्वास मत होगा. इसका मतलब है कि सीएम का कार्यालय और विधानसभा की कार्यवाही इस अदालत के निर्णय के अधीन है. 19 जुलाई को अकेले एकनाथ शिंदे ने चुनाव आयुक्त से संपर्क किया.

सिब्बल ने रखी ये दलील

सिब्बल ने कहा कि जो विधायक अलग हुए वो शिवसेना के थे. वो अलग होने पर अन्य पार्टी के साथ सरकार बना सकते थे लेकिन शिवसेना पर आधिपत्य के आधार पर सरकार नहीं बना सकते. सिब्बल ने कहा कि विधायक किसी अन्य पार्टी के साथ जाते हैं या अलग होते हैं तो वह पार्टी की सदस्यता खो देते हैं. वह खुद पार्टी पर कब्जा नहीं ले सकते. सिब्बल ने कहा कि पार्टी तोड़ने की स्थिति में वह विधानसभा में पार्टी के सदस्य के तौर पर कैसे आ सकते हैं.

लोकतंत्र किधर जा रहा है- सिब्बल

सिब्बल ने कहा कि वे कैसे कह सकते हैं कि एक ही पार्टी में अलग-अलग गुट हैं. जो लोग इसके विपरीत मतदान करते हैं जबकि यह साफ है कि वे एक राजनीतिक दल नियंत्रण में है. वे उस पार्टी के प्रतिनिधि हैं, वे स्वतंत्र नहीं हैं. ऐसे में अगला कदम अयोग्यता है. सिब्बल ने कहा कि आज चलन यह है कि लोग राज्यपाल के पास जाते हैं और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकते हैं. लोकतंत्र किधर जा रहा है? इस तरह कोई सरकार नहीं चल सकती. सिब्बल ने कहा कि अगर चुनाव आयोग कोई निर्णय लेता है तो अदालत में लंबित मामले का कोई अर्थ नहीं होगा.