छत्तीसगढ़

हिजाब मामला: स्कूल को यूनिफॉर्म लागू करने से नहीं रोक सकते- SC

नईदिल्ली I हिजाब मामले पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम स्कूल के यूनिफॉर्म तय करने के अधिकार का उपयोग करने से नहीं रोक सकते. छठें दिन सुनवाई की समाप्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 20 सितंबर (मंगलवार) तक मामले की सुनवाई पूरी कर ली जाएगी. जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, कॉलिन गोंसॉल्विस, मीनाक्षी अरोड़ा समेत अन्य ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दी. एडवोकेट जयना कोठारी ने कहा कि हिजाब पहनने की मनाही से भेदभाव कैसे होता है, इस पर पहला फैसला ब्रिटेन का एक फैसला है, जहां एक लड़की “कड़ा” पहनना चाहती है, जिसकी अनुमति स्कूल ने नहीं दी थी क्योंकि आभूषण की अनुमति नहीं थी.

मैं इस तर्क को स्वीकार नहीं कर पा रहा हूं, जिसमें नुकसान की बात कही जा रही है जहां एक समुदाय के एक सदस्य को कुछ ऐसा पहनने से रोका जाता है, जो उसके धर्म के लिए आवश्यक है. जयना कोठारी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून का क्या पालन किया जा रहा है. सार्वजनिक संस्थानों में क्या राज्य महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाली कार्रवाई कर सकता है? इसी बीच सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया से कहा कि उन्हें मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी और उन्हें बड़ी बेंच के पास मामला भेजना चाहिए था.

दवे ने अदालत के अनुरोध को ठुकराया

दवे ने कहा कि बेंच उन्हें निर्धारित समय तक दलील रखने के लिए सीमित नहीं कर सकती और दवे ने बहस आज खत्म करने के अदालत के अनुरोध को ठुकरा दिया. वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने दलील दी कि यूएन कनवेंशन बच्चों को उनके धर्म का पालन करने और भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है. किसी के धर्म या विश्वासों को प्रकट करने की स्वतंत्रता केवल ऐसी सीमाओं के अधीन हो सकती है, जो कानून द्वारा निर्धारित हैं. सार्वजनिक सुरक्षा, व्यवस्था, स्वास्थ्य या नैतिकता या मौलिक अधिकारों और दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आवश्यक हैं. राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए है कि स्कूली अनुशासन बच्चे की मानवीय गरिमा के अनुरूप और वर्तमान यूएन कनवेंशन के अनुरूप हो.

स्कूल के भीतर एक धार्मिक सहिष्णुता-वरिष्ठ अधिवक्ता अरोड़ा

वरिष्ठ अधिवक्ता अरोड़ा ने कहा कि हम जो देख रहे हैं की स्कूल के भीतर एक धार्मिक सहिष्णुता है. अधिकारों पर यून कन्वेंशन पढ़ना जारी रखते हुए आरोड़ा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र देख रहा है कि देश किस प्रकार इसका पालन कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इस तरह के पहलुओं के बारे में कैसे विचार किया है? नॉर्वे का एक मामला है. जहां उनका एक खास धर्म है और मानवाधिकार समिति ने कन्वेंशन का उल्लंघन पाया. अरोड़ा ने कहा कि नॉर्वे ने एक ईसाई राज्य होने के कारण अपने बच्चों को केवल ईसाई मूल्यों की शिक्षा देने के लिए चुना. लेकिन समिति ने कहा कि नहीं, आपको बच्चों को उनके अपने विश्वास का पालन करने देना चाहिए.

अधिवक्ता अरोड़ा ने कहा कि शिक्षा का संपूर्ण उद्देश्य धार्मिक सहिष्णुता लाना है. अगर हम धार्मिक अभिव्यक्ति के एक पहलू पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दें जो सार्वजनिक व्यवस्था, क्या वह नैतिकता के खिलाफ नहीं है. हम अपने बच्चों तक धार्मिक सहिष्णुता नहीं पहुंचा रहे हैं. अरोड़ा ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की समिति ने पाया कि स्कार्फ पर प्रतिबंध उस परंपरा का उल्लंघन है जिसकी हमने पुष्टि की है.